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महामारी के बाद से डीजल की मांग में वृद्धि सबसे कम हो जाती है

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भारत में सबसे अधिक खपत वाले पेट्रोलियम उत्पाद डीजल की मांग में वृद्धि 31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष में महामारी के बाद से सबसे कम रही। इसका कारण अर्थव्यवस्था की धीमी गति और स्वच्छ ईंधन की खपत में इजाफा है। तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना व विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) की ओर से जारी अनंतिम आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल 2024 से मार्च 2025) में डीजल की खपत 2 प्रतिशत बढ़कर 91.4 मिलियन टन हो गई।

ट्रकों और कृषि मशीनरी को चलाने के लिए उपयोग किए जाने वाले डीजल की मांग में 2024-25 में वृद्धि पिछले वित्त वर्ष के 4.3 प्रतिशत और 2022-23 के 12.1 प्रतिशत के मुकाबले काफी धीमी रही। भारत में इस्तेमाल होने वाले तेल में डीजल का हिस्सा करीब 40 प्रतिशत है। मांग में नरमी देश में आर्थिक गतिविधियों से जुड़ा रुझान देती है। बीते कुछ वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) भारत में डीजल की मांग को नया आकार देने लगे हैं।

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उद्योग के जानकारों के अनुसार डीजल अब भी भारत के परिवहन क्षेत्र के तीन-चौथाई हिस्से को संचालित करता है। हालांकि ईवी का इस्तेमाल बढ़ने के कारण डीजल की मांग में वृद्धि धीमी हो रही है। पेट्रोल की तुलना में डीजल की खपत घटने का मुख्य कारण भी ईवी का बढ़ता इस्तेमाल है।

दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में इलेक्ट्रिक बसों को तेजी से अपनाया जा रहा है, और कई टियर-2 और टियर-3 शहरों में इलेक्ट्रिक ऑटो-रिक्शा (ई-रिक्शा) प्रमुख हो गए हैं, जिससे शहरी सार्वजनिक परिवहन में डीजल के उपयोग में सीधे तौर पर कमी आई है।

इसके अलावा, अमेजन, फ्लिपकार्ट और बिगबास्केट जैसी कंपनियां अपने डिलीवरी बेड़े को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदल रही हैं। यह बदलाव मुख्य रूप से डीजल से चलने वाली वैन और एलसीवी (लाइट कमर्शियल व्हीकल्स) को प्रभावित करता है। इससे लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में डीजल की मांग कम हो जाती है।

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पेट्रोल की खपत 7.5 प्रतिशत बढ़कर 40 मिलियन टन हो गई, जबकि एलपीजी की मांग 5.6 प्रतिशत बढ़कर 31.32 मिलियन टन हो गई। विमानन क्षेत्र में तेजी को दर्शाते हुए, जेट ईंधन की खपत 2024-25 में लगभग 9 प्रतिशत बढ़कर लगभग 9 मिलियन टन हो गई।

उद्योगों में ईंधन के रूप में उपयोग किए जाने वाले नेफ्था की मांग 4.8 प्रतिशत घटकर 13.15 मिलियन टन रह गई, जबकि ईंधन तेल की खपत लगभग एक प्रतिशत घटकर 6.45 मिलियन टन रह गई। सड़क निर्माण में इस्तेमाल होने वाले बिटुमेन की खपत 5.4 प्रतिशत घटकर 8.33 मिलियन टन रह गई। पेट्रोलियम कोक की मांग में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और इसी तरह स्नेहक और ग्रीस की मांग में भी 12.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

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कुल मिलाकर, भारत में पेट्रोलियम उत्पादन खपत 21 प्रतिशत बढ़कर 239.171 मिलियन टन हो गई। यह वृद्धि 2023-24 में 5 प्रतिशत, पिछले वर्ष 10.6 प्रतिशत और 2021-22 में 3.8 प्रतिशत की वृद्धि से धीमी थी। अगर 2019-20 और 2020-21 के कोविड प्रभावित दो सालों को छोड़ दिया जाए तो 2024-25 में तेल की खपत में वृद्धि एक दशक में सबसे धीमी रही। 2019-20 और 2020-21 के दौरान, तेल की मांग में गिरावट आई क्योंकि महामारी को फैलने से रोकने के लिए देश के ज्यादा हिस्सों में लॉकडाउन लगा हुआ था।

1 अप्रैल से शुरू हुए चालू वित्त वर्ष के लिए पीपीएसी ने तेल की मांग में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया है जो लगभग 253 मिलियन टन रह सकती है। डीजल की खपत 3 प्रतिशत बढ़कर 94.1 मिलियन टन और पेट्रोल की खपत 6.5 प्रतिशत बढ़कर 42.63 मिलियन टन होने का अनुमान है।

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